Personal Opinion on Ind vs Pak war

अब war रुक गया है, ceasefire हो गया है। अच्छा हुआ।

लेकिन अब कुछ लोग कह रहे हैं – “रुकना नहीं चाहिए था, war चलता तो Pakistan हमारा होता।”

भाई, जज़्बा समझ सकता हूँ। ग़ुस्सा भी legit है। पर एक बार बस थोड़ा सा ठहर कर सोचिए—किस के लिए? और सबसे बड़ी बात—किस कीमत पर?

जंग जीत कर भी अगर सिर्फ़ भूतियापन, राख और radioactive हवा बची, तो ऐसी जीत का मतलब क्या?
ज़मीन मिल जाए, पर उस ज़मीन पे कुछ उगता ही ना हो, इंसान तो दूर, कीड़े मकोड़े भी ना बचें, तो क्या जीता?

अगर ये war nuclear तक गया होता, तो क्या होता?

  • 10–15 करोड़ लोग तुरंत भाप बन जाते। कोई चीख भी नहीं पाता, कोई लाश भी नहीं मिलती। सिर्फ़ shadow रह जाती दीवारों पर।

  • जो बचते, उनका जीना हर रोज़ मरने से बुरा होता। Cancer, radiation burns, body से गिरता हुआ मांस, खोपड़ी तक सुलगती।

  • नदियाँ ज़हर बन जातीं। Ganga-Yamuna का पानी pious नहीं, poison हो जाता। Himalaya की बर्फ़ पे गिरता radioactive ash, सब नदियों में घूमता।

  • खेती ख़त्म। मिट्टी में कुछ नहीं उगता। साल के साल famine। भूख से लोग एक-दूसरे का मांस खाने तक आ जाते।

  • Cities vanish. Delhi, Mumbai, Ahmedabad, Amritsar – कोई safe नहीं। Infrastructure ख़त्म। Communication systems dead. Power grids ग़ायब।

  • Mass migration. जो बचे रहते, वो भागने लगते। Nepal, Bangladesh, Afghanistan. लेकिन उनका स्वागत कोई नहीं करता, क्योंकि उनका शरीर खुद एक चलता-फिरता reactor बन चुका होता।

  • Global climate collapse. Nuclear winter. सूरज दिखता ही नहीं। 24 घंटे अंधेरा। 2 डिग्री नहीं, 20 डिग्री तक घट सकती है temperature। पूरा South Asia बर्फ़ बन जाता, लेकिन किसी snowfall वाली ख़ुशी के साथ नहीं—radiation वाली मौत के साथ

ये सब सुनके कई लोग बोलते हैं – “तो क्या कुछ न करते?”
नहीं भाई। ज़रूर करते। पर करने का मतलब ये थोड़ी कि सब कुछ जला दो।
जब कोई पागल तलवार लेकर आ जाए, तो उसे रोका जाता है, लेकिन ख़ुद भी पागल बन जाओ, ये तो और बड़ा risk है।

कुछ लोग बोलते हैं – “हमारी army घुस रही थी, Lahore हमारा होता।”
होता, शायद। पर फिर? रुकते क्या?
रुकता नहीं। Pakistan के पास “No First Use” nuclear policy नहीं है।
उनके पास कुछ बचा नहीं होता तो वो button ज़रूर दबा देते।
और उसके बाद?

मैं ये सब इसलिए नहीं कह रहा कि मैंने documentary देख ली, या किसी research paper का graph याद है।
मैं hospital के ICU में था जब ये सब हो रहा था।
Mummy critical थीं।
उनके monitor से आती “beep… beep…” की आवाज़ अब भी याद है।
हर beep एक सांस की क़ीमत समझा रही थी।
Tab life ki kimat samajh aa rahi thi.
जब अपना कोई उस line पर हो, तो दुनिया का हर border, हर missile, हर ego छोटा लगता है।

असली जीत क्या होती है?

जब तुम्हारा दुश्मन तुम जैसा बनना चाहे।
जब किसी दिन Pakistan का आम आदमी ख़ुद बोले – “हम ग़लती पे थे।”
जब वहाँ के schools और colleges में कोई student बोले – “हमें Hindustan जैसा बनना है।”
ये होती है असली विजय।

Missile से नहीं, mission से जीतना पड़ेगा।
जीत वही होती है जो टिकती है।
बाकी तो बस headlines बनती हैं, या history के chapters – जिनमें लाशों के नाम कभी नहीं लिखे जाते।

जो मारे जाएंगे, वो इतिहास में सिर्फ़ “casualty number” बनकर रह जाएंगे – नाम, चेहरे, सपने सब धुंधला हो जाएंगे।
उनकी माओं के आंसू, बच्चों के सवाल, और परिवारों की चुप्पी को कभी कोई अख़बार नहीं छापेगा।

इसलिए लड़ाई से ज़्यादा ज़रूरी है वक़्त पर रुक जाना।
हर बार आख़िरी गोली चलाना बहादुरी नहीं होती। कई बार अकलमंदी होती है – जंग को वहीं रोक देना जहां से तबाही शुरू हो सकती है।

क्योंकि ज़मीन जीतने से बड़ी बात है ज़िंदगी बचा लेना


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