होमी भाभा और भारत का परमाणु ऊर्जा मिशन | एक अधूरी क्रांति की कहानी

होमी भाभा और भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम: एक अधूरी लेकिन प्रेरणादायक क्रांति

क्या भारत परमाणु ऊर्जा में दुनिया से पीछे क्यों रह गया?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों में झांकना होगा, जहां एक महान वैज्ञानिक—डॉ. होमी जहांगीर भाभा—ने भारत को एक परमाणु महाशक्ति बनाने का सपना देखा था।

यह कहानी है स्वतंत्र भारत, परमाणु विज्ञान, और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के टकराव की, जिसने भारत के भविष्य की दिशा बदल दी।

स्वतंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती: ऊर्जा

साल 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब हम एक गरीब, पिछड़े और संसाधनों से वंचित देश थे।
80% आबादी गांवों में रह रही थी, बिजली और ईंधन की भारी कमी थी।

हम या तो ऊर्जा का खुद उत्पादन कर सकते थे, या फिर विदेशों से खरीद सकते थे। लेकिन आयात एक जोखिम भरा कदम था, क्योंकि:

  • मध्य पूर्व पर ब्रिटेन और अमेरिका का नियंत्रण था

  • भारत को डर था कि किसी दिन तेल की आपूर्ति रोक दी जाएगी

  • 1948 में ही पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो गया था

ऐसे में ऊर्जा आत्मनिर्भरता भारत की ज़रूरत बन गई थी।

होमी भाभा: एक दूरदर्शी वैज्ञानिक

होमी जहांगीर भाभा ने महसूस किया कि अगर भारत को एक आधुनिक और विकसित राष्ट्र बनना है, तो परमाणु ऊर्जा अनिवार्य है।

उन्होंने बताया कि:

  • 1 ग्राम यूरेनियम = 1 टन कोयले जितनी ऊर्जा

  • परमाणु ऊर्जा = स्वच्छ, टिकाऊ और कुशल

  • भारत को तेल और कोयले के आयात से छुटकारा मिल सकता है

भारत का खज़ाना: थोरियम

भारत के पास विश्व का 25% थोरियम भंडार है, जो मुख्य रूप से इन राज्यों में पाया जाता है:

  • ओडिशा

  • आंध्र प्रदेश

  • तमिलनाडु

  • केरल

थोरियम यूरेनियम से ज्यादा सुरक्षित, स्थिर और सस्ती परमाणु ऊर्जा देता है।
लेकिन चुनौती यह थी कि दुनिया में कहीं भी थोरियम रिएक्टर नहीं बना था। कोई तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध नहीं था।

होमी भाभा की तीन-चरणीय परमाणु योजना

भाभा ने एक अनूठी योजना बनाई जिसे आज भी भारत की परमाणु नीति का आधार माना जाता है:

चरण 1:

यूरेनियम आधारित रिएक्टर में बिजली उत्पन्न करना और साथ ही प्लूटोनियम बनाना।

चरण 2:

प्लूटोनियम का प्रयोग करके और अधिक बिजली और यूरेनियम-233 बनाना।

चरण 3:

थोरियम + यूरेनियम-233 का उपयोग करके दीर्घकालिक, सुरक्षित और आत्मनिर्भर ऊर्जा उत्पादन।

मौतें जो भारत के सपनों को निगल गईं

भारत जब परमाणु परीक्षण के करीब पहुंचा, तब दो प्रमुख व्यक्तित्व रहस्यमयी तरीके से दुनिया से चले गए:

  • 11 जनवरी 1966: लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु ताशकंद में हुई।

  • 24 जनवरी 1966: होमी भाभा की प्लेन क्रैश में मृत्यु हुई।

दोनों की मौतों की जांच अधूरी रह गई। ये वही समय था जब भारत न्यूक्लियर ब्रेकथ्रू के कगार पर था।

भारत का परमाणु परीक्षण और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध

  • 1974: भारत ने “Smiling Buddha” के नाम से पहला परमाणु परीक्षण किया।

  • 1998: पोखरण-2 परीक्षण हुआ, जिससे भारत ने दुनिया को बताया कि हम एक परमाणु शक्ति हैं।

लेकिन इन परीक्षणों के बाद:

  • अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए

  • यूरेनियम और तकनीक की आपूर्ति रोक दी गई

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग बंद हो गया

आज भारत की क्या स्थिति है?

  • भारत के पास 24 ऑपरेशनल न्यूक्लियर रिएक्टर हैं

  • फास्ट ब्रीडर रिएक्टर 2024 में तैयार हुआ

  • लेकिन अभी तक थोरियम आधारित रिएक्टर नहीं बना

दूसरी ओर, चीन ने थोरियम तकनीक पर पहला प्रयोग कर लिया है। यह स्थिति बताती है कि भारत अभी भी बहुत पीछे है।

होमी भाभा से मिलने वाली तीन बड़ी सीख

  1. जब कोई देश तरक्की की कगार पर होता है, तो शक्तिशाली देश उसे रोकने की कोशिश करते हैं

  2. अंतरराष्ट्रीय रिश्ते स्वार्थ पर आधारित होते हैं, दोस्ती पर नहीं

  3. भारत को ऊर्जा और सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा—थोरियम इसका रास्ता है

 क्या हम होमी भाभा के सपने को पूरा करेंगे?

आज भी भारत की ऊर्जा का 3% ही परमाणु स्रोत से आता है
हम मध्य पूर्व के तेल, चीन के सोलर पैनल्स, और बाहरी तकनीक पर निर्भर हैं।

अगर हमें वाकई आत्मनिर्भर भारत बनाना है, तो हमें:

  • थोरियम टेक्नोलॉजी पर निवेश बढ़ाना होगा

  • सरकारी नीति में तेजी लानी होगी

  • होमी भाभा के अधूरे सपने को पूरा करना होगा

एक महान वैज्ञानिक का सपना अधूरा है। क्या हम उसे साकार करेंगे


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