छत्रपति शिवाजी महाराज: हिन्दवी स्वराज के संस्थापक
भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम अमर है। उन्होंने न केवल एक महान साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि अपनी अद्वितीय रणनीति, शासन प्रणाली और साहस से भारतीय इतिहास को एक नई दिशा दी। शिवाजी महाराज ने मुगल साम्राज्य के विरुद्ध अदम्य साहस के साथ संघर्ष किया और हिन्दवी स्वराज की स्थापना की। उनकी छापामार युद्ध शैली, प्रशासनिक क्षमता और दूरदर्शिता ने उन्हें भारत के महानतम शासकों में से एक बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 ई. में हुआ था। वे शहाजी राजे भोसले और जिजाबाई के पुत्र थे। उनके दादा मालोजीराजे भोसले (1552-1597) अहमदनगर सल्तनत के एक प्रभावशाली जनरल थे, जो पुणे, चाकण और इंदापुर के देशमुख थे। शिवाजी के पिता शहाजीराजे भी बीजापुर सुल्तान के दरबार में एक प्रभावशाली राजनेता थे। शिवाजी के व्यक्तित्व पर उनकी माता जिजाबाई का गहरा प्रभाव था, जिन्होंने उन्हें हिंदू धर्म और संस्कृति के बारे में शिक्षा दी और उनमें स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना का सपना बोया।
शिक्षा और प्रारंभिक प्रभाव
शिवाजी के शिक्षा और प्रारंभिक जीवन पर माता जिजाबाई और उनके गुरुओं का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने राजनीति, युद्ध कला, धर्म और प्रशासन का गहन अध्ययन किया। छत्रपाल, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों से उन्होंने प्रेरणा प्राप्त की। यही कारण था कि युवावस्था से ही वे एक कुशल राजनीतिज्ञ और रणनीतिकार के रूप में उभरे।
मराठा साम्राज्य की स्थापना
शिवाजी महाराज ने 1674 ई. में पश्चिमी भारत में हिन्दवी स्वराज या मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इस महान कार्य के लिए उन्हें मुगल साम्राज्य के शासक औरंगज़ेब से निरंतर संघर्ष करना पड़ा। शिवाजी ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में ही स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना का संकल्प लिया था और इस दिशा में वे निरंतर प्रयासरत रहे।
स्वराज का विचार
शिवाजी महाराज का ‘हिन्दवी स्वराज’ का विचार केवल एक राजनीतिक संकल्पना नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसा शासन था जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और सुशासन पर बल दिया गया था। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण भारत में पहले हिंदू साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य न केवल धार्मिक रूप से बल्कि प्रशासनिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी एक नवीन व्यवस्था का प्रतीक था।
युद्ध कौशल और रणनीति
छत्रपति शिवाजी महाराज ने युद्ध कला में अनेक नवाचार किए। उन्होंने समर-विद्या में अद्वितीय प्रतिभा दिखाई और गोरिल्ला युद्ध या छापामार युद्ध की शैली विकसित की, जिसे ‘शिवसूत्र’ के नाम से जाना जाता है।
छापामार युद्ध शैली
शिवाजी महाराज गोरिल्ला युद्धनीति के जनक माने जाते हैं। उन्होंने पहाड़ी किलों का उपयोग करके, रात में अचानक आक्रमण करके और फिर तेजी से वापस लौटकर मुगल सेना को कई बार परास्त किया। यह युद्ध शैली उनकी सफलता का प्रमुख कारण थी, क्योंकि इससे वे कम सैनिकों के साथ भी बड़ी सेनाओं को पराजित कर सकते थे।
मुगलों के विरुद्ध संघर्ष
शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में मुगल साम्राज्य, विशेषकर औरंगज़ेब से निरंतर संघर्ष किया। उनकी रणनीति ने मुगल सैन्य बल को कई बार चकमा दिया और अपने राज्य को विस्तारित करने में सफलता पाई। उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र की रक्षा की बल्कि मुगल क्षेत्रों पर भी आक्रमण कर उन्हें चुनौती दी।
आगरा में आमंत्रण और पलायन
शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित होकर औरंगज़ेब ने उन्हें आगरा दरबार में आमंत्रित किया। जब शिवाजी आगरा पहुंचे, तो उन्हें महसूस हुआ कि उनका सम्मान नहीं किया जा रहा है। इसके विरोध में उन्होंने दरबार में अपना रोष प्रकट किया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। इस पर क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने उन्हें नजरबंद कर दिया और 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिए।
साहसपूर्ण पलायन
औरंगजेब का इरादा शिवाजी को मारने का था, लेकिन अपने अदम्य साहस और बुद्धिमत्ता के बल पर शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी 18 अगस्त 1666 को नजरबंदी से भागने में सफल रहे। उन्होंने संभाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहां छोड़ा और स्वयं बनारस और फिर पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुंच गए। यह घटना शिवाजी के साहस और बुद्धिमत्ता का एक ज्वलंत उदाहरण है और मराठा लोगों में नवजीवन का संचार करने वाली थी।
सूरत पर आक्रमण
शिवाजी ने 1670 में दूसरी बार सूरत नगर पर आक्रमण किया। सूरत उस समय भारत का सबसे धनी व्यापारिक केंद्र था और मुगल साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण था। इस आक्रमण में शिवाजी को 132 लाख की संपत्ति प्राप्त हुई। वापस लौटते समय उन्होंने सूरत के पास मुगल सेना को फिर से हराया। यह आक्रमण न केवल आर्थिक लाभ के लिए था बल्कि मुगल साम्राज्य को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से चोट पहुंचाने के लिए भी था।
राज्याभिषेक और छत्रपति की उपाधि
सन् 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अंतर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक कराने का निर्णय लिया।
राज्याभिषेक समारोह
प्रारंभ में महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने शिवाजी के राज्याभिषेक से मना कर दिया था, यह कहते हुए कि वे क्षत्रिय जाति से नहीं हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए, शिवाजी के निजी सचिव बालाजी जी ने काशी से गागाभट्ट नामक पंडित को बुलाया, जिन्होंने शिवाजी का राज्याभिषेक संपन्न कराया। इस समारोह में विभिन्न राज्यों के दूत, प्रतिनिधि और विदेशी व्यापारी भी उपस्थित थे।
माता का देहांत और दूसरा राज्याभिषेक
राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही शिवाजी की माता जिजाबाई का देहांत हो गया था। इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को शिवाजी ने दूसरी बार छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। इन दोनों समारोहों में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए थे। इस समारोह में “हिन्दवी स्वराज” की स्थापना का उद्घोष किया गया था।
प्रशासनिक व्यवस्था
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने राज्य के लिए एक व्यवस्थित प्रशासनिक ढांचा तैयार किया जिसमें अष्टप्रधान मंडल (आठ मंत्रियों की परिषद) प्रमुख थी।
अष्टप्रधान मंडल
शिवाजी के राज्य में अष्टप्रधान मंडल सर्वोच्च प्रशासनिक निकाय था जिसमें पेशवा (प्रधानमंत्री), अमात्य (वित्त मंत्री), सचिव (विदेश मंत्री), सेनापति (सेना प्रमुख), समंत (राजदूत), पंडित राव (धार्मिक मामलों के प्रमुख), न्यायाधीश और आमत्नानावीस (शाही हिस्टोरियन) शामिल थे। यह प्रणाली राज्य के सुचारु संचालन में बहुत प्रभावी सिद्ध हुई।
सांस्कृतिक योगदान
शिवाजी महाराज का सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया। उन्होंने मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया, जिससे इन भाषाओं का विकास हुआ और स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिला।
धार्मिक सहिष्णुता
शिवाजी महाराज ने अपने राज्य में सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता की नीति अपनाई। हालांकि वे स्वयं हिंदू थे और हिंदू परंपराओं के पुनरुत्थान के लिए प्रतिबद्ध थे, उन्होंने अपने राज्य में सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की।
शिवाजी की विरासत
छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन 1680 ई. में हुआ, लेकिन उनका साहस, दूरदर्शिता और रणनीतिक कौशल आज भी प्रेरणा देता है। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में नायक के रूप में स्मरण किए जाते हैं। बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की थी।
आधुनिक भारत में प्रभाव
आज भी शिवाजी महाराज भारतीय समाज, विशेषकर महाराष्ट्र में एक आदर्श और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनके जीवन से जुड़े स्थान, किले और स्मारक देश के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। उनके द्वारा स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था और युद्ध कौशल आधुनिक शासन और सैन्य रणनीति के लिए भी प्रासंगिक हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज पर FAQs और उनके उत्तर
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छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र में हुआ था| -
शिवाजी महाराज ने अपने सैन्य अभियान की शुरुआत कब की?
उन्होंने 1645 में तोरणा किले पर कब्जा करके अपने सैन्य अभियान की शुरुआत की थी| -
शिवाजी महाराज को भारतीय नौसेना का जनक क्यों कहा जाता है?
उन्होंने भारत की पहली संगठित नौसेना बनाई और तटीय क्षेत्रों की रक्षा के लिए नौसैनिक किलों का निर्माण किया| -
शिवाजी महाराज ने कौन-कौन से प्रमुख युद्ध जीते?
उन्होंने प्रतापगढ़ (1659), पुरंदर (1665), सिंहगढ़ (1670) और कई अन्य युद्धों में जीत हासिल की| -
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक कब हुआ था?
उनका राज्याभिषेक 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में हुआ था| -
शिवाजी महाराज ने धार्मिक सहिष्णुता कैसे बढ़ाई?
उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और मुसलमानों को भी प्रशासन में उच्च पद दिए| -
अष्ट प्रधान मंडल क्या था और इसका महत्व क्या था?
यह शिवाजी द्वारा स्थापित आठ मंत्रियों की एक परिषद थी, जो प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिम्मेदार थी| -
शिवाजी महाराज ने मराठी भाषा को कैसे बढ़ावा दिया?
उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में मराठी और संस्कृत का उपयोग शुरू किया, जिससे स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन मिला| -
शिवाजी महाराज ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा कैसे की?
उन्होंने महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए और दहेज प्रथा पर रोक लगाई| -
शिवाजी महाराज को आज भी क्यों याद किया जाता है?
उन्हें उनकी बहादुरी, न्यायप्रिय शासन, और स्वराज्य स्थापना के लिए पूरे भारत में सम्मानित किया जाता है|
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के एक महानायक थे जिन्होंने अपने अदम्य साहस, दूरदर्शिता और कुशल नेतृत्व से न केवल एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और स्वाभिमान की रक्षा भी की। उनका जीवन आज भी हमें स्वाभिमान, साहस और न्याय के लिए प्रेरित करता है। मुगल साम्राज्य जैसी विशाल शक्ति के विरुद्ध उनका संघर्ष साहस और रणनीतिक कौशल का अद्भुत उदाहरण है।
शिवाजी महाराज ने अपने समय में न केवल एक राजनीतिक क्रांति लाई बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे सच्चे अर्थों में एक जनसेवक, राष्ट्रनायक और चरित्रवान शासक थे जिनकी विरासत कालातीत है। आधुनिक भारत में भी शिवाजी महाराज का जीवन और आदर्श हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।
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